गणितज्ञ वशिष्ठ नारायण सिंह, कहाँ खो गए?
कभी उन्हें चेहरे पर मुस्कुराहट लिए तो कभी आँखों में आंसू लिए हुए देखा जाता रहा है. कभी चलते हुए तो कभी किसी जगह पर थम कर घंटों सोचते हुए लोगों ने देखा है उन्हें. उन्हें जब भी देखा है लोगों ने उसी नज़रिए से देखा है, जो वो हैं.
ज़वानी का दौर था तब उन्हें लोग वैज्ञानिक जी कहते थे और आज भी शायद बिहार के इस धरोहर को लोग उसी नज़र से देखते हैं. क्योंकि आज भी 74 साल के इस गणितज्ञ वशिष्ठ नारायण सिंह की कहानी ज़िंदगी की कहानी सबसे अलग है.
तो आईये मिलिए इस भारत के महान गणितज्ञ और बिहार की आन, बान शान श्री वशिष्ठ नारायण सिंह जी से जो आज कहीं गुमनामी की गलियों में खो गए हैं?
बिहार से कैलिफोर्निया तक का सफ़र
गणितज्ञ वशिष्ठ नारायण सिंह तब पटना साइंस कॉलेज में पढ़ते थे. उसी समय कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर कैली की नज़र उन पर पड़ी. कैली ने उनसे मिलते ही उनकी प्रतिभा की पहचान कर लिया और १९६५ में गणितज्ञ वशिष्ठ नारायण सिंह अमेरिका चले गए.
वशिष्ठ नारायण सिंह ने आंइस्टीन के सापेक्ष सिद्धांत को चुनौती दी थी. उनके बारे में मशहूर है कि नासा में अपोलो की लांचिंग से पहले जब 31 कंप्यूटर कुछ समय के लिए बंद हो गए तो कंप्यूटर ठीक होने पर उनका और कंप्यूटर्स का कैलकुलेशन एक था.
पढ़ने और लिखने की दुनिया
आज भी गणितज्ञ वशिष्ठ नारायण सिंह का पढ़ने-लिखने का दौर जारी है. आज भी उनके परिवार वालों को उनके लिए पेन्सिल, किताबें और कॉपी खरीद कर लानी पड़ती है. आज भी यह गणितज्ञ दीवारों पर कुछ लिखता है और बुदबुदाता है.
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